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चीन के रक्षा मंत्रालय ने घोषणा की है कि उनका देश जल्द ही ईरान और रूस के साथ साझा नौसैनिक युद्धाभ्यास करेगा.
चीन, रूस और ईरान ‘चाबहार के नज़दीक’ करेंगे संयुक्त सैन्य अभ्यास, क्या है इसका रणनीतिक महत्व?
चीन, रूस और ईरान आने वाले दिनों में चाबहार बंदरगाह के पास एक संयुक्त सैन्य अभ्यास करने जा रहे हैं। यह कदम क्षेत्रीय सुरक्षा, रणनीतिक सहयोग और भू-राजनीतिक संतुलन के लिहाज से बेहद अहम माना जा रहा है।
चीन के रक्षा मंत्रालय ने एक आधिकारिक बयान जारी किया है जिसमें कहा गया है कि ये अभ्यास ईरान के पास समुद्र में होंगे। इस बीच, ईरान की तसनीम समाचार एजेंसी की रिपोर्ट है कि ये सैन्य अभ्यास सोमवार को ओमान की खाड़ी में, दक्षिण-पूर्वी बंदरगाह शहर चाबहार के निकट शुरू होंगे। हाल के वर्षों में, ईरान, रूस और चीन के बीच संयुक्त नौसैनिक अभ्यास नियमित रूप से किए गए हैं। हालांकि, वर्तमान सैन्य गतिविधियाँ उस समय हो रही हैं जब इज़राइल और संयुक्त राज्य अमेरिका ने हाल के महीनों में ईरान के परमाणु कार्यक्रम को रोकने के लिए सैन्य कार्रवाई की बार-बार धमकी दी है।
इस सैन्य अभ्यास के प्रमुख बिंदु:
✅ स्थान: हिंद महासागर और चाबहार के आस-पास का क्षेत्र।
✅ उद्देश्य: नौसैनिक सहयोग बढ़ाना और सामरिक शक्ति का प्रदर्शन।
✅ प्रभाव: भारत, अमेरिका और पश्चिमी देशों की नजर इस युद्धाभ्यास पर।
इसके मायने क्या हैं?
🔹 चाबहार की अहमियत: यह बंदरगाह भारत और ईरान की एक महत्वपूर्ण परियोजना है, जो व्यापार और सामरिक दृष्टि से बेहद अहम है।
🔹 चीन-रूस-ईरान गठबंधन: यह सैन्य अभ्यास तीनों देशों के बीच बढ़ते रक्षा सहयोग को दर्शाता है, जो अमेरिका और पश्चिमी देशों के लिए एक कूटनीतिक संदेश हो सकता है।
🔹 भारत के लिए चुनौती? भारत चाबहार में अपनी उपस्थिति बढ़ाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन इस अभ्यास से क्षेत्रीय भू-राजनीति पर असर पड़ सकता है।
क्या भारत पर पड़ेगा असर?
इस अभ्यास से भारत को सीधे कोई खतरा नहीं है, लेकिन चीन और ईरान के बढ़ते संबंध भारत के रणनीतिक हितों के लिए एक नई चुनौती खड़ी कर सकते हैं।
कौन-कौन ले रहे हैं हिस्सा?

अगले सप्ताह से, एक सैन्य अभ्यास होगा जिसमें चीन और रूस के युद्धपोत शामिल होंगे, साथ ही सहायक जहाज और सैनिक भी। इसके अतिरिक्त, ईरान अपनी नौसेना और क्रांतिकारी गार्ड्स के नाम से जाने जाने वाले विशेष बल के साथ भाग लेगा। तसनीम समाचार एजेंसी के अनुसार, आधा दर्जन देश इस सैन्य अभ्यास में पर्यवेक्षकों के रूप में शामिल होंगे, जिनमें अजरबैजान, दक्षिण अफ्रीका, पाकिस्तान, कतर, इराक, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और श्रीलंका शामिल हैं। एएफपी समाचार एजेंसी के अनुसार, इस अभ्यास का उद्देश्य आपसी सहयोग को बढ़ाना है। हाल के वर्षों में, इन तीन देशों की सशस्त्र सेनाओं ने समान सैन्य अभ्यासों में भाग लिया है। इसके अलावा, तसनीम समाचार एजेंसी का कहना है कि यह सैन्य अभ्यास “भारतीय महासागर के उत्तर” में होगा, जिसका उद्देश्य “क्षेत्रीय सुरक्षा और भाग लेने वाले देशों के बीच बहुपरकारी सहयोग को मजबूत करना” है।
अमेरिका- ईरान तनाव में ट्रंप की एंट्री

ईरान, रूस और चीन का सैन्य अभ्यास: ट्रंप की चिट्ठी और बढ़ता तनाव
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में कहा था कि उन्होंने ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई को एक पत्र भेजकर परमाणु कार्यक्रम पर चर्चा के लिए आमंत्रित किया था। हालांकि, ईरान ने इस प्रस्ताव को सख्ती से ठुकरा दिया और इसे “अत्याचारी” करार दिया।
ट्रंप की चिट्ठी के जवाब में ईरान का कड़ा रुख़
ईरान के सर्वोच्च नेता को भेजे गए ट्रंप के पत्र पर ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराक्ची ने पहले कहा था कि ऐसा कोई पत्र उन्हें नहीं मिला है। लेकिन इस बयान के बाद ख़ामेनेई ने अमेरिका की आलोचना करते हुए कहा कि ईरान को दबाव डालकर बातचीत की मेज़ तक नहीं लाया जा सकता।
ईरान, रूस और चीन का सैन्य अभ्यास – क्या है संकेत?
ईरान द्वारा अमेरिकी प्रस्ताव को ठुकराने के ठीक बाद, रूस, चीन और ईरान ने साझा सैन्य अभ्यास की घोषणा की। यह अभ्यास हिंद महासागर और चाबहार बंदरगाह के पास किया जाएगा, जो वैश्विक सुरक्षा समीकरणों में अहम भूमिका निभा सकता है।
व्हाइट हाउस की प्रतिक्रिया और अमेरिका की चेतावनी
ईरान के इस रुख़ के बाद व्हाइट हाउस ने सख्त प्रतिक्रिया दी। अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (NSC) के प्रवक्ता ब्रायन ह्यू ने ईरान को परोक्ष रूप से धमकी देते हुए कहा,
“हमें उम्मीद है कि ईरान अपने लोगों और हितों को आतंकवाद से ऊपर रखेगा। अगर हमें सैन्य कार्रवाई करनी पड़ी, तो इसका अंजाम बेहद बुरा होगा।”
ईरान को लेकर अमेरिका और इसराइल की रणनीति
ट्रंप प्रशासन के दौरान अमेरिका ने ईरान पर “अधिकतम दबाव” डालने की नीति अपनाई थी। 4 फरवरी 2025 को जारी एक राष्ट्रीय सुरक्षा ज्ञापन में ईरान के परमाणु कार्यक्रम को अमेरिका के लिए खतरा बताया गया था। इसके तहत ईरान के परमाणु हथियार और इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम को रोकने और उसके आतंकी नेटवर्क को खत्म करने की बात कही गई थी।
अमेरिका के अलावा इसराइल भी ईरान के खिलाफ सख्त रणनीति अपना रहा है। इसराइली सेना के नए प्रमुख इयाल ज़मीर ने पदभार संभालते ही घोषणा की कि 2025 युद्ध का साल हो सकता है और उनकी प्राथमिकता ग़ज़ा पट्टी और ईरान पर केंद्रित होगी।
ईरान, रूस और चीन का साझा नौसैनिक अभ्यास: क्या है इसकी रणनीतिक अहमियत?
यह पहली बार नहीं है जब ईरान, रूस और चीन ने मिलकर नौसैनिक अभ्यास किया है। रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद से ही ईरान और चीन पर रूस को सैन्य सहायता देने के आरोप लगते रहे हैं।
पहले भी हो चुके हैं संयुक्त युद्धाभ्यास
📌 मार्च 2024 और मार्च 2023 में इन तीनों देशों ने चार-चार दिन के नौसैनिक अभ्यास किए थे।
📌 ये अभ्यास हिंद महासागर के उत्तरी हिस्से और ओमान की खाड़ी के पास आयोजित किए गए थे।
📌 इनका नाम “मरीन सिक्योरिटी बेल्ट 2023” और “मरीन सिक्योरिटी बेल्ट 2024” रखा गया था।
📌 इनमें ईरानी नौसेना और रिवॉल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स दोनों ने भाग लिया था।
क्यों चुना जाता है ओमान की खाड़ी का इलाका?
🔹 इन सैन्य अभ्यासों के लिए ओमान की खाड़ी को प्राथमिकता दी जाती है, जो फारस की खाड़ी और होर्मुज जलडमरूमध्य के मार्ग पर स्थित है।
🔹 यह क्षेत्र रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि यहीं से वैश्विक तेल आपूर्ति का लगभग 20% हिस्सा गुजरता है।
🔹 इस इलाके पर नियंत्रण का मतलब है ऊर्जा बाजारों और वैश्विक व्यापार पर प्रभाव।
क्या है इस अभ्यास का संदेश?

ईरान, रूस और चीन का यह सहयोग अमेरिका और पश्चिमी देशों के लिए एक बड़ा संकेत है कि ये देश क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को बदलने की कोशिश कर रहे हैं। सवाल यह है कि क्या यह साझेदारी केवल सैन्य अभ्यास तक सीमित रहेगी या भविष्य में किसी बड़े गठजोड़ का रूप लेगी?
एक-एक कदम बढ़ते रूस और ईरान
शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) में ईरान की स्थायी सदस्यता और ब्रिक्स में शामिल होने के बाद, ईरानी सरकार ने चीन और रूस के साथ मजबूत संबंध स्थापित किए हैं। इन संबंधों के तहत सुरक्षा, राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्रों में कई समझौते किए गए हैं।
इसी वर्ष फरवरी में, ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अराक्ची ने तेहरान में रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव से मुलाकात की। इस मुलाकात के बाद आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में अराक्ची ने कहा, “ईरान अपने परमाणु मुद्दे पर अमेरिका के साथ सीधी बातचीत नहीं करेगा।” उन्होंने यह भी कहा कि ईरान इस मामले में रूस और चीन के साथ समन्वय बनाकर आगे बढ़ेगा।
इस बीच, रूस भी हाल के दिनों में अमेरिका के साथ सीधी बातचीत कर रहा है। दोनों देशों के प्रतिनिधियों ने रियाद में मुलाकात की और अपनी चर्चा के दौरान ईरान के मुद्दे पर भी बातचीत की।
डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ लेने से कुछ दिन पहले, यानी 12 जनवरी 2025 को, रूस और ईरान ने एक व्यापक रणनीतिक साझेदारी समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते के अनुसार, दोनों देश एक-दूसरे के साथ सैन्य, राजनीतिक, व्यापारिक और आर्थिक संबंधों को मजबूत करेंगे।
पिछले साल सितंबर 2024 में, नाटो के महासचिव जेन्स स्टोल्टेनबर्ग ने बीबीसी को बताया कि रूस, ईरान, चीन और उत्तर कोरिया पहले से कहीं अधिक एकजुट और समन्वित हो गए हैं। इसी तरह की चेतावनी नाटो के वर्तमान महासचिव मार्क रट ने भी दी है। उन्होंने कहा, “रूस और चीन के साथ मिलकर उत्तर कोरिया और ईरान उत्तर अमेरिका और यूरोप को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं।”
क्या होगा आगे?
ईरान, रूस और चीन का सैन्य अभ्यास अमेरिका और पश्चिमी देशों के लिए एक स्पष्ट संदेश है कि ईरान अब वैश्विक समर्थन जुटाने की कोशिश में है। वहीं, अमेरिका और इसराइल लगातार ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर चिंतित हैं। अब सवाल यह है कि क्या यह टकराव सैन्य संघर्ष में बदलेगा या कूटनीतिक हल निकलेगा?